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यूं ही नहीं कोई लता मंगेशकर बन जाता, बरसों करनी पड़ती है तपस्या

मुंबई ब्यूरो, अनंत विजय। कोई यूं ही लता मंगेशकर नहीं बन जाता। लता मंगेशकर बनने के लिए कई सालों तक तपस्या करनी होती है। ऐसा कोई भारतीय नहीं, जिसे उन पर गर्व न हो। भारत रत्न लता मंगेशकर की जन्मतिथि पर अनंत विजय का आलेख…

लता मंगेशकर, एक ऐसा नाम जिस पर हर भारतवासी को गर्व है। संगीत की दुनिया में बेहद सम्मान के साथ इस नाम को लिया जाता है। भारत रत्न लता मंगेशकर की आवाज में जादू है, उनके अंदर ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा है …आदि आदि बातें तो हम उनके बारे में सुनते ही रहते हैं, लेकिन ऐसा बहुत कम बार होता है कि उनके संघर्ष को रेखांकित किया जाए।

वह थी हुनर की आवाज

लता मंगेशकर ने उस दौर में गाना शुरू किया था जब तकनीक इतनी विकसित नहीं थी। साउंड रिकार्डिंग और मिक्सिंग के इतने उन्नत यंत्र नहीं थे। ‘महल’ का गाना ‘आएगा आने वाला’ ने लता को बहुत प्रसिद्धि दी। बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि इस गाने में ध्वनि का जो उतार-चढ़ाव है वह किसी तकनीक के सहारे पैदा नहीं किया गया बल्कि उसकी रिकार्डिंग ही उस तरह से की गई। अगर आप उस गाने को याद करें तो अशोक कुमार जब आईने के सामने खड़े हैं और गाना शुरू होता है तो आवाज दूर से आती लगती है और फिर तीन-चार पंक्तियों के बाद पास से आती प्रतीत होती है। तकनीक के सहारे इस तरह का ध्वनि प्रभाव पैदा किया जा सकता है, लेकिन उस वक्त इसको करने के लिए गायक को बहुत मेहनत और संतुलन साधना पड़ता था।

गानों को बेहतर बनाने के लिए घंटों करती थीं प्रयास

इस बारे में लता मंगेशकर ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि माइक्रोफोन को कमरे के बीच में रखा गया था और वो कमरे के एक कोने में खड़ी हो गई थीं। पहला छंद ‘खामोश है जमाना’ गाते हुए लता जी माइक की तरफ बढ़ती जातीं और जब माइक के सामने पहुंचतीं तब ‘आएगा आने वाला’ शुरू करतीं। यह काम इतना मुश्किल था कि परफेक्शन के लिए इस प्रक्रिया को कई बार दुहराना पड़ा था। खेमचंद प्रकाश ने इस गाने को संगीतबद्ध किया था। रिकार्ड होने के बाद भी इस फिल्म के प्रोड्यूसर सावक वाचा इससे संतुष्ट नहीं थे और उनको लगता था कि यह गीत लोकप्रिय नहीं हो पाएगा, जबकि दूसरे प्रोड्यूसर अशोक कुमार की राय भिन्न थी। इस तरह के दर्जनों उदाहरण हैं जब लता मंगेशकर ने गानों को बेहतर करने के लिए दिन-दिन भर प्रयास किए।

सुबह से शाम बस गाना

1948-49 वह वर्ष है जब लता मंगेशकर एक दिन में आठ-आठ गाने रिकार्ड करती थीं। दो गाने सुबह, दो गाने दोपहर, दो गाने शाम और दो गाने रात में गाती थीं। कई बार ऐसा होता था कि वो सुबह घर से निकलतीं और देर रात दो-तीन बजे तक घर पहुंच पाती थीं। खाने-पीने का भी कोई ठिकाना नहीं रहता था। कई बार तो ऐसा होता था कि गाने की रिकार्डिंग हो जाती थी और बाद में बताया जाता था कि रिकार्डिंग ठीक नहीं हो पाई तब फिर से गायक को बुलाया जाता था।

नाम जानने को आते

एक संघर्ष तो यह था ही, लेकिन लता मंगेशकर ने वो दौर भी देखा है जब गायकों को उनके गाने का नाम नहीं मिलता था। फिल्मों में भी या बाद में जब रिकार्ड बनने लगे तो उसमें भी आरंभिक दिनों में पाश्र्व गायकों को क्रेडिट नहीं दिया जाता था। यह स्थिति बहुत लंबे समय तक रही। जब ‘आएगा आने वाला’ गाने का रिकार्ड बना तो उस पर गायिका के तौर पर फिल्म ‘महल’ की नायिका कामिनी का नाम छपा, जिसकी भूमिका में मधुबाला थीं। कल्पना कीजिए तब लता मंगेशकर पर क्या गुजरी होगी जब उन्होंने वह रिकार्ड देखा होगा। इसके भी पहले जब रेडियो पर यह गाना बजाया जाता था तब इसके गायक का नाम नहीं बताया जाता था। रेडियो स्टेशन में सैकड़ों पत्र सिर्फ ये जानने के लिए आते थे कि इस गाने की गायिका कौन हैं। जब फिल्म ‘बरसात’ में लता मंगेशकर को गायक के तौर पर क्रेडिट मिला तो वो बहुत खुश हुई थीं

जीवन किया समर्पित

लता मंगेशकर कोई यूं ही नहीं बन जाता। लता मंगेशकर बनने के लिए कई सालों तक तपस्या करनी होती है, अपना जीवन समर्पित करना पड़ता है। मुंबई (तब बांबे) के नाना चौक इलाके के दो कमरे के छोटे से फ्लैट में मां और भाई-बहनों के साथ रहते हुए लता मंगेशकर ने न दिन देखा और न रात, बस एक ही सपना था कि बेहतरीन गाना है। लता मंगेशकर जब भी कोई गाना गातीं तो अपने पिता मास्टर दीनानाथ मंगेशकर की दी गई वह सीख याद रखतीं जो उन्होंने गायन की शिक्षा आरंभ करते वक्त अपनी छोटी सी बेटी को दी थी। उन्होंने तब लता को कहा था कि ‘गाते समय हमेशा यह सोचना कि तुमको अपने पिता या गुरु से बेहतर गाना है।

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